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आप स्वयं में यूनिक हैं।

प्रकृति में पाए जाने वाले प्रत्येक जीवों में कुछ-ना-कुछ भिन्नता अवश्य पाई जाती है। चाहे वह वृहद स्तर पर प्रजातीय विविधता या जैविक विविधता के रूप में दृष्टिगत होया फिर सूक्ष्म स्तर पर आनुवांशिक विविधता के रूप में। इस विविधता के पीछे का कारण भले ही चाहे “नेचुरल सिलेक्शन” (Natural Selection) हो या, “एडॉप्शन थ्योरी” (Adoption Theory), या फिर “म्यूटेशन थ्योरी” (Mutation Theory)। लेकिन, यहां यह जानना काफी रोचक होगा कि आखिर इतनी विविधताओं के बावजूद भी जीवों में इतनी घनिष्ठता कैसे आईकैसे प्राणी एक-दूसरे के निकट आएऐसी क्या वजह रही कि अलग-अलग क्षमताओंविचारोंव प्रकृति से युक्त प्राणी एक-दूसरे के साथ मिलकर परिवारसमुदायराज्य और देश बनाकर रहने को तैयार हुए?

“मूलभूत आवश्यकताएं और इसके उपरांत उत्पन्न होने वाली तमाम आकांक्षाओं को प्राप्त करने में होने वाली सहजता” को इस एकता का मूल माना जा सकता है। और यदि मैं इसे सत्य मान लूंतो फिर कुछ बहुत ही कठोर प्रश्नों से सामना होता है। जैसे- कोई भी जीव एक-दूसरे के समान नहीं है, इसलिए हरेक व्यक्ति स्वयं के सोच की भांति, स्वयं के आचरण की भांति अन्य से अपेक्षा करता है, जो कि कभी पूरी नहीं होती, इसलिए वह किसी के भी साथ वास्तव में नहीं रहना चाहता है; मसलन यह उसकी एक आवश्यकता या महज एक आकांक्षा मात्र है, जिसे साधने हेतु तमाम प्रकार के सोशल इंस्टीट्यूशंसमूर (Moore), कस्टमकल्चररिलीजनएजुकेशनएडमिनिस्ट्रेशन व सोशल कंडीशनिंग का सहारा लिया जाता है।

सदियों से चली आ रही ऐसी व्यवस्था की प्रासंगिकता को सोचना काफी रोमांचकारी हो सकता है। जहां इस व्यवस्थासोच या सहयोगात्मक रुख ने प्राचीन जीवों की सभ्यता को कोसों आगे लाकर खड़ा कर दिया है। उनके भीतर सहिष्णुताप्रेमआदरसम्मानस्वतंत्रताबंधुत्वउदारताएंपैथी (Empathy) जैसे मूल्यों के विकास में सहायक रहा है। वहींइस व्यवस्था ने आज “एक-सा होने” की दौड़ भी पैदा कर दी है। आज हर कोई अपनी संतति में अपना अक्स ढूंढता है और उससे किसी-न-किसी के समान बनने की चाहत रखता हैजिससे उसकी स्वाभाविक प्रकृति प्रभावित होती है। यह तर्क थोड़ा अजीब है कि “मुझे फला की तरह बनना है “यूनिक” (Unique)। यह सोचने हेतु काफी गंभीर विषय है कि आखिर कोई किसी अन्य की तरह बन जाने के बाद यूनिक कैसे रह जाएगा?

सच्चाई तो यह है कि सृष्टि की प्रत्येक चीज स्वयं में यूनिक है। आप जो हैं, जैसे हैं, स्वयं में पूर्ण हैं, यूनिक हैं। जरूरत बस इतनी है कि आप अपनी इस विशिष्टता को पहचाने, स्वयं को पहचाने और अपनी भूमिका का निर्वहन करेंविशिष्ट आप स्वतः हो जाएंगे। क्योंकि दूसरों कि देखा-देखी में आपने यदि खुद के अस्तित्व को ही विलीन कर दियातो फिर आने वाली सफलता ना तो आपकी होगी और ना ही वह मीठी लगेगी।

So, just a small request from all of you my friends,

                                 “Find yourselves and Save yourselves

Stay calm & stay happy.

Thank you.

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